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जय बजरंग तोड़ दे दुश्मन की कली,
थी नाजुक हाथों में पली,
अचानक मची खलबली,
पर मुमताज बिस्तर से नहीं हिली !
मोदी के नाम से ही इर्षा से जल पड़ी,
रह न सकी खड़ी,
खाट से ही गिर पड़ी,
जय बजरंग बलि !
बाहर से आवाज आई,
पप्पू ने गद्दी पाई,
एक हजार चम्मचों ने
मीठी खीर खाई !
चमचों में कुछ दिल फेंक भी थे,
सेठ साहूकारों के लाडले,
स्कूलों से निकाले गए अमीर थे !
पप्पू के इर्द गिर्द घेरा बना कर
अपनी भी किस्मत अजमा रहे थे !
कुछ चमचे फ़ौज में जाने की बातें कर रहे थे,
फ़ौज में बड़ी मौज है,
हवा में उड़ती ख़बरों का जिक्र कर रहे थे !
एक बिगड़े रईस का साहब जादा बोला,
हाँ फ़ौज में बड़े मजे हैं, राशन के अलावा दारु भी मिलती है,
दिल की बुझी हुई किस्मत की कली खिलती है !
“ये जिंदगी है मौज में,
तू भर्ती होजा फ़ौज में,
जब पडेगा बम का गोला,
तू कूद जाना हौज में ” !
दूसरा चमचा बोला,
नहीं नहीं फ़ौज में दुश्मन से लड़ना पड़ता है,
खून खराबा करना पड़ता है !
हर कदम पर आतंकवादी हमला कर देते हैं,
पुलिस का काम भी फ़ौज को ही करना पड़ता है !
तीसरा बोला,
भाई मैंने तो यहां तक सूना है की
हमारे साहब की दादी ने कभी फ़ौज को नकारने की वकालत की थी,
“हम तो शान्ति प्रेमी हैं हमें सेना की जरूरत नहीं” ये बाते कही थी !
“हिंदी चीनी भाई भाई” कहते कहते चीन ने हमारा इलाका कबर कर लिया,
नाम मात्र के सैनिक थे, पुराने हथियारों के साथ, उन्हें यमपुरी पहुंचा दिया !
उन् दिनों साहब जादे की दादी के पापा प्रधान मंत्री थे,
तीन मूर्ति में उनकी रक्षा पर पुलिस फ़ौज के संत्री थे !”
मैं तो क्रिकेट खेलूंगा, रन बनाऊंगा,
विकेट लूंगा, मालामाल हो जाऊंगा,
विराट कोहली की तरह इटली जाकर शादी करूंगा,
साउथ अफ्रिका जाकर हनीमून मनाऊंगा !
आज असली मजा क्रिकेट में है, न राजनीति न धना सेठ में है !
अपने साहेबजादे को कहेंगे की “छोडो ये राजनीति,
एक क्रिकेट अकेडमी खोल दो, वैट बॉल में किस्मत आजमाओ,
देश-विदेश घूमों और मीडिया में छा जाओ !
कोच होगा हमारा खली,
जय बजरंग बलि तोड़ दे दुश्मन की नली !! हरेंद्र
फिर ६५ और ७१ में पाकिस्तान
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