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रामायण के गुप्त रहस्य भाग दो

jagate raho
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लक्ष्मण जी द्वारा खींची गयी ‘लक्ष्मण रेखा’ आज भी उतनी ही प्रभावशाली है जितनी वह त्रेता युग में थी !
जब अहिरावण सोये हुए भगवान् राम और लक्ष्मण को पाताल लोक ले गया, सुबह रामा दल में हलचल मच गयी, सब भगवान् राम और लक्ष्मण जी को खोजने में लग गए !
विभीषण जी बोले, “हनुमान जी, लगता है अहिरावण, भगवान जी को बंधु समेत पातळ लोक ले गया है, आपको जल्दी पाताल लोक जाकर उन्हें अहिरावण के चंगुल से छुड़ा कर
लाना होगा ! हनुमान जी, उसी समय पाताल लोक चले गए ! महल के गेट पर ‘घटोत्कच्छ’ द्वारपाल की ड्यूटी पर खड़ा था ! उसने हनुमान जी को अंदर जाने से रोक दिया ! दोनों अपनी ड्यूटी बजा रहे थे, हनुमान जी भगवान् राम-लक्ष्मण जी को बचाने के लिए आये थे और घटोत्कच्छ अहिरावण के भवन में द्वारपाल की ड्यूटी कर रहा था, दोनों में घमाशान संग्राम हुआ, आखिर हनुमान जी ने घटोत्कच्छ को काबू करकर उसे अपने बदन से निकाले हुए बालों की रस्सी बनाकर बाँध कर गेट के एक किनारे पर डाल कर अंदर जाते हुए उन्होंने उसे उसके पिता का नाम पूछा ! उसने अपने पिता का नाम ‘हनुमान’ बताया !’हनुमान’ जी ने कहा, “मै ही हनुमान हूँ, मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूँ, मेरी कोई संतान नहीं है” ! घटोत्कच्छ ने हनुमान जी को फिर अपने जन्म की कहानी सुनाई ! “जब हनुमान जी सीता जी को खोजने के लिए समुद्र के ऊपर से पवन वेग से जा रहे थे तो उनके बदन से एक बूँद पशीने की एक बून्द समुद्र में गिर गयी, उस बूँद को एक मछली ने उदरग्रस्त कर लिया ! नौ महीने के बाद अहिरावण के किसी सैनिक ने उस मछली को जाल में फंसा कर उसका पेट चीरा तो उसमें से उसे मैं मिला ! जब उस मरती हुई मछली से उस सैनिक ने इस रहस्य के बारे में पूछा तो उसने ये किस्सा उसे सुनाया था, उसी सैनिक ने मेरे बालिग़ होने पर मुझे ये सारी कहानी सुनाई” ! जब हनुमान जी ने अहिरावण को उसके सारे साइकों के साथ मार गिराया और भगवान् राम लक्षमण को अपने कन्धों में बिठाकर बाहर गेट पर आया, रामचंद्र जी की नजर बंधे हुए घटोत्कच्छ पर पद गयी ! उनहोंने पूछा “ये कौन है, और बाँध कर क्यों एक कोने में डाला हुआ है” ! हनुमान जी ने भगवान् को सारी कहानी बयान
करदी ! भगवान् जी ने उसे बंधन मुक्त करवाकर पाताल लोक की गद्दी पर बिठाकर उसका राज्याभिषेक किया और तब वे लक्ष्मण सहित हनुमान जी के कंधें में बैठकर लौट कर वापिस लंका में आए ! इधर रावण के सारे नामी ग्रामी योद्धा युद्ध भूमि में मारे जा चुके थे और केवल रावण अकेला बचा था ! उसे भगवान् राम ने युद्ध के दशवें दिन यानी दशहरे के दिन मारा !
अब सवाल उठता है की त्रेता युग में रावण जैसे महाबली, दुष्ट क्रूर और पापी कैसे बन गए थे !
कहानी शुरू होती है, जब भगवान् राम-लक्ष्मण, सीता हरण के बाद सीता जी की खोज में जंगल जंगल, पर्वत पर्वत, नदी घाटियों में भटक रहे थे, उसी जंगल में शंकर भगवान् सती के साथ कुदरत के करिश्मे का आनंद ले रहे थे ! अचानक भगवान् शंकर जी की नजर राम पर पड़ गयी और उनहोंने हाथ जोड़ कर उनको नमन किया ! शंकर जी ने होशियारी से नमन किया था, ताकि सती जी न देख पाए की मैंने, जिसे वे देवताओं का भी देवता समझे बैठी है, जंगल में अपनी पत्नी की तलाश में भटक रहे वनवासी राजकुमार को हाथ जोड़ कर नमन कर रहे हैं ! लेकिन सती जी ने उन्हें देख लिया था ! उस अवतार में सती जी महाराजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी ! सती जी का मानना था की आशुतोष, शिव शंकर देवताओं में सबसे बड़े देवता हैं ! उनके ऊपर कोई नहीं है ! लेकिन जब उनहोंने शंकर जी को बनवासी राजकुमारों को हाथ जोड़कर नमन करते देखा तो उन्हें अपने ज्ञान रूपी धारणा पर शक होगया ! इस बारे में उनहोंने शंकर जी से पूछा की ‘आप तो देवो के देव महादेव हो तो फिर उन वनवासी राजकुमारों को आपने हाथ जोड़ कर नमन क्यों किया’ ?
शंकर जी ने उन्हें बताया की वे पारब्रह्म परमेश्वर विष्णु के अवतार हैं और रावण जैसे दुष्ट पापियों को मिटाने के लिए अवतार लेकर मानव रूप में धरती पर आए हैं ! लेकिन सती जी के शंका का समाधान नहीं हुआ, तो शंकर जी ने उन्हें स्वयं जाकर शंका समाधान करने की इजाजत दे दी ! सती जी सीता बनकर वनवासी भगवान् राम चंद्र जी के रास्ते में खड़ी होगई, भगवान् रामचंद्र जी ने उन्हें नमस्कार किया और पूछा, “माताजी, बाबा शंकरजी कहाँ हैं ?” सुनते ही सती जी पसीना पसीना होगई, वे जल्दी से वहां से चलकर अपने आश्रम तक बड़ी तेज गति से आई ! आते ही बाबा शंकर जी ने उनसे पूछ डाला, ” जल्दी, आगई, क्या भगवान् राम की परीक्षा ले ली ” ! यहाँ सती जी शंकर जी से झूट बोल गई ! सती जी बोली,” मुझे आपकी बातों पर विश्वास ही नहीं भरोषा भी था, मैंने कोई परीक्षा नहीं ली ” ! लेकिन शंकर जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब कुछ देख लिया !
“सती कीन्ह सीता कर बेषा ! सिव उर भयउ विषाद विशेषा !!
जौं अब करूँ सती सं प्रीति ! मिटइ भगति पथु होइ अनीति !!
अब शंकर जी ने सती जी से दूरी बनानी शुरू कर दी, लेकिन सती जी से इस विषय में कुछ भी नहीं बोले ! शिव जी ने अखंड समाधी लगादी ! ८७ हजार वर्ष बीत जाने पर शिव जी ने समाधी खोली ! उनहोंने आखँ खोल कर सती जी को सामने बिठाकर, उन्हें भगवान् हरी की रसमयी कहानी सुनानी शुरू कर दी ! उन्हीं दिनों सती जी के पिता जी, महाराजा दक्ष प्रजापति को ब्रह्मा जी ने मनुष्यों में सबसे योग्य प्रतिभाशाली, समझ कर उन्हें सभी प्रजापतियों का नायक बना दिया ! पद पाते ही प्रजापति महाराजा दक्ष को ह्रदय में अभिमान होगया ! उन्होंने धरती के सारे मुनियों को बुलाकर एक बहुत बड़ा महा यज्ञ करना शुरू कर दिया ! उन्होंने पृथ्वी और स्वर्ग के सारे यज्ञ में भाग पाने वालों को निमंत्रण देदिया लेकिन महादेव शंकर जी को निमन्त्र नहीं भेजा ! देवताओं के पुष्प विमान नभ मंडल से उड़ते हुए प्रजापति महाराजा दक्ष की राजधानी में उतर रहे थे ! आसमान में उड़ते हुए विमानों को देखते हुए सती जी ने महादेव जी से विमानों के वारे में पूछा, की ये विमान किसके हैं और कहाँ जा रहे हैं ? जबाब में महादेव जी ने कहा कि ‘ये सारे विमान देवताओं के हैं और आपके पिता जी के महायज्ञ में शामिल होने जा रहे हैं’ ! सती जी बोली, ‘मेरे पिताजी यज्ञ करने जा रहे हैं, मेरी सारी बहिने इसमें शामिल होंगी, मैं भी जाउंगी ‘ ! महादेव जी ने सती जी को बहुत समझाया की ‘ऐसे यज्ञ, महायज्ञों में कभी भी बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए, चाहे वह उसके खुद के पिता माता द्वारा ही किया जा रहा हो’ ! लेकिन सती जी ने हट बाँध लिया, तो शंकर जी उन्हें जाने की इजाजत देदी साथ ही उनके साथ अपने दो विश्वापात्र गण भेज दिए ! जब सती जी अपने पिता जी के घर पहुँची तो वहां उनका आदर सत्कार नहीं हुआ, न उनकी बहनों ने ही उससे उसकी कुशल मंगल पूछी ! ! लेकिन जब उनहोंने गेट पर पहरेदार की पोशाक में अपने पति शंकर जी की प्रतिमा देखि तो वे बहुत क्रोधित होगई और यज्ञ को ही विध्वंस करने के लिए वे यज्ञशाला में जाकर अग्नि में कूद पड़ी ! सारे राज्य में हाहाकार मच गया, शिव जी द्वारा भेजे गए दोनों गणों ने यञशाला को नष्ट प्राय कर दिया ! इस मार धार में महाराजा दक्ष भी मारे गए ! सारे मेहमान देवता अपनी अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग खड़े हुए ! उधर शंकर जी को सती जी के अग्नि प्रवेश की खबर मिली, वे भी तुरंत वहां पहुँच गए और सती जी के जले हुए शव को कंधें में डाल कर हिमालयकी पर्वत श्रेणियों में मतवाले की तरह घूमने लगे और कही हजार वर्षों तक घूमते ही रहे ! सती जी के शरीर के अंग जहां जहां गिरते गए, आने वाले समय में उन स्थानों पर उसी तरह के नामों से मंदिर बन गए ! ज्यादातर मंदिर हिमांचल प्रदेश में हैं ! बाकी अगले अंक
में !

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